ग्रामीण इलाकों में संचालित कुटीर उद्योग-धंधे पनपने की बजाय दम तोड़ रहे है

राजकुमार झा/छातापुर, सुपौल

प्रशासनिक उपेक्षा व राजनेताओं की अनदेखी की वजह से ग्रामीण इलाकों में संचालित कुटीर उद्योग-धंधे पनपने की बजाय दम तोड़ रहे हैं। नतीजतन इनसे जुड़े लोगों का जहां व्यवसाय छीनता जा रहा है। वहीं बड़ी संख्या में कुशल हाथ बेरोजगार हो रहे हैं। कुछ इसी तरह की स्थिति को बयां करते प्रतीत हो रहे है डहरिया पंचायत स्थित चकला गांव के वार्ड 2 के हालात। जहां 300 सौ से अधिक बुनकर परिवार आज रोजगार की आस लगाये दर-दर भटक रहे है। ये वही लोग हैं जिनके हाथों की कारीगरी से निर्मित कंबलों से कुछ वर्ष पूर्व तक राज्य भर की ठंडक दूर हुआ करती थी। लेकिन उपेक्षा के दंश ने आज उनके हाथों से रोजगार छीनकर उन्हें बेकार बना दिया है।


जानकारी अनुसार 80 के दशक में स्थानीय अयोधी मंडल द्वारा प्रदत्त जमीन पर सरकारी स्तर से कम्बल निर्माण के लिए कमल बुनकर उद्योग केन्द्र की स्थापना हुई थी। सहकारिता विभाग द्वारा कॉपरेटिव के तहत 150 मेंबर बनाकर एसबीआई से लगभग 100 मेंबर को ऋण देकर यह बुनकर उद्योग चल रहा था, और कंबल तैयार कर बेजा जा रहा था। इस गांव में वर्तमान में लगभग 50 परिवार लगभग पांच हाजर भेड़ पाला जा रहा है। शुरूआती दौर में उन की सुलभता व बुनकरों की कुशल कारीगरी की वजह से यह उद्योग काफी अच्छी तरह से चला और यहां निर्मित कम्बल आस पास के शहरों में बिक्री हेतु भेजा जाने लगा। इस उद्योग की वजह से आसपास के परिवारों को रोजगार मिलना प्रारंभ हुआ। अपितु स्थानीय भेड़ पालकों को भी इससे बड़ी राहत मिली। उन्हें अपने भेड़ की ऊन की उचित कीमत मिलने लगी।


स्थानीय लोगों ने बताया कि उक्त बुनकर केन्द्र में काफी उन्नत किस्म की कम्बल का निर्माण होता था। काफी गर्म होने की वजह से यहां बने कम्बलों की बाजार में अच्छी खासी मांग थी। परन्तु केन्द्र का संचालन सही तरीके से न हो पाने की वजह से यह बुनकर केन्द्र 1995 में बंद हो गया । तब से लेकर आज तक केंद्र बंद पड़ा है । केन्द्र बन्द होने के बाद वहां लगी यांत्रिक मशीने आज यूं ही बेकार पड़ी हैं। साथ ही यहां के बुनकरों के लिए भी रोजगार की समस्या उत्पन्न हो गई है। गौरतलब है कि उक्त वार्ड के करीब 200 परिवारों के जीविकोपार्जन का मुख्य साधन आज भी भेड़ पालन है। जहां हजारों की तादाद में भेड़ पाली जाती है। केन्द्र बन्द होने के बाद भेड़ पालक भेड़ का उन फेकने को विवश हैं। डीडीसी के आदेश पर 22 जुलाई 2019 को बंद पड़े बुनकर केंद्र का निरक्षण करने बीडीओ अजित कुमार सिंह पहुंचे थे, निरक्षण के बाद डीडीसी को रिपोर्ट भेजा गया था। लेकिन आज तक कोई पहल नहीं हुआ।

स्थानीय उपेन्द्र मंडल, अशोक मंडल, भोला मंडल, देवन मंडल, महावीर मंडल, शैनी मंडल, नागो मंडल, सुधीर मंडल ने बताया कि महात्मा गांधी का सपना था ग्राम स्वराज योजना और कुटीर उद्योग को प्रोत्साहन दिया जाय ताकि ग्राम स्तर पर छोटे छोटे उद्योग धंधा फले फुले और ग्रामीण परिवेश में रहने वाले कास्तकार और मजदूरों की आर्थिक हालत सुदृढ बन सके । लेकिन इन दिनों भारत सरकार बड़े बड़े उद्योगपतियों को प्रोत्साहित कर रही है। लेकिन लघु उद्योग के प्रति और गरीब बुनकर मजदूर उनकी माली हालत कैसे सुदृढ हो इस दिसा में सरकार कोई प्रयास नहीं कर रहा है ।

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